सारी जमा बाँटने को तैयार बैठा हूँ
मेरी तकरीरें मुझसे विदा चाहती हैं
एक वसीयत है जो लिखी जानी है
मगर कुछ पन्ने
धूप से उसका कंधा चाहते हैं
एक शाम की भूख को सौदे हजार
रात नींद में कटे के सारे जतन व्यर्थ
कि कोई माफी यहाँ दस्तक नहीं देती
सारे सौदे मुकम्मल हक चाहते हैं
देखो..
छींके से गिरे पतीले की तरह चूर पड़ी है व्यंजना
यहाँ आँगन में पत्ते बिखरे रहते हैं
कोई छाया पेड़ के नीचे बैठी रहती तो है
पर कोई अनुराग मेरा दरबार नहीं करता
जरा करवटों से पूछो
बात करो तो जानो...
कि रात भर जलना ...टूटना क्या होता है
मिलती नहीं
जबकि मैं दिन से बहुत थोड़ा उजाला माँगता हूँ
कि कुछ दाने ऐसे भी होते हैं
जिनके भाग्य कोई जीभ नहीं होती
कि बीज बनना भी कोई मजाक थोड़ी है